यथार्थ से दूर “सेवटा की गाथा”
डॉ.अनिल कुमार पाण्डेय आई.ए.एस.
ग्रामीण परिवेश आधुनिक युग में वहीं छाया वृत्तियों से ढका हुआ, सुनहरा सौंदर्य पर्यावरण वाला अरुणोदय मई आभा पूर्वजों के श्रम सीकर से सजा हुआ, अपरूप आदर्श ग्राम्य सेवटा अपने अभूत पूर्व इतिहास सजाएं नव युवा पीढ़ियों में एक अद्भुत जोश संचालित तरंगे अवतरित कर देता है।
आदर्श ग्राम्य सेवटा में शुभ मुहूर्त में १५ जनवरी सन् १९६७ ई. में जन्में माननीय श्री डॉ.अनिल कुमार पाण्डेय सुपुत्र स्वर्गीय श्री लक्ष्मी नारायण पाण्डेय जी जो ग्रामीण प्राथमिक विद्यालय सेवटा, शिक्षा क्षेत्र जहानागंज जनपद आजमगढ़ से अपनी प्रारम्भिक शिक्षा प्रारंभ किया, वह अपने समय के होनहार विद्यार्थी रहे, माननीय श्री डॉ.अनिल कुमार पाण्डेय जी सन् १९९२ ई. में यू.पी.पी.सी.एस. परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले मात्र एक ग्रामीण आंचल में एक बहुमूल्य रत्न हुए है, जिन्हें आने वाली पीढ़ियां सदैव इनके संघर्ष संस्करण मूल्य बिंदुओं को स्मरण कर अपना भविष्य निर्माण करेगा।
अपने उम्र के पड़ाव में मैं अब तक माननीय श्री डॉ.अनिल कुमार पाण्डेय जी से साक्षात्कार नहीं हुआ है, ग्राम्य जन्य और अपने बड़े भैय्या स्वर्गीय श्री प्रवीण कुमार पाण्डेय द्वारा इनके कौशल कीर्ति का अनुपम कहानियां अपने श्रवण से सुना हूं।
जो कौशल पताका माननीय श्री डॉ. अनिल कुमार पाण्डेय जी ने ग्रामीणय धरा पर फहराया है, उसका छांव ग्रामीण आंचल में ग्रामीणों युवाओं और अभिभावकों में अभी तक शून्य सा प्रतीत होता हैं।
जिस परिश्रम सम्राज्ञीय समिधा, इन्होंने जिस हवन कुण्ड यज्ञ में अर्पित किया है, उसे माननीय श्री डॉ.अनिल कुमार पाण्डेय जी तो स्पर्श महसूस कर मंजिल शिखर तक पहुंच कर अपने पूर्वजों के साथ अपने परिवार और ग्राम्य का नाम आर्यावर्त में स्थापित कर रोशन किया है।
इस सम्राज्ञीय यज्ञ की ज्वालाएं तो उन्नतीस तीस वर्षों से जलते जलते शीतल मन्द जान पड़ता है, तीस वर्षों से ए ज्वालाएं युवाओं में वह लग्न, चेतना, आत्मविश्वास का चिंगारी तक नहीं जगा पाई है, ग्रामीणों में इनके चेतना का पुनर्जागरण नहीं हो पाया, यह बहुत ही ज्वलंत विषय है कि इतने प्रतिभा वान संस्मरण से सीख न लिया जाए, जिनमें यह लहर दौड़ी वह अपने अर्ध आयु में ही अंत्येष्टि में समाहित हो गए, जो बचे हैं उनमें वह प्रतिभा नहीं, कुछ बचे हैं तो वह उम्र के पड़ाव पार कर गए हैं।
नव युवा पीढ़ियों में तो मानों यह सम्राज्ञीय यज्ञ ज्वालाएं ताप स्पर्शता की बात दूर है, युवाओं में इनके आदर्श साक्ष्य से भी अपरोक्ष अनभिज्ञ है, ग्रामीण युवाओं को इनके प्रमाणित चिन्ह तक नहीं मालूम कि हमारे ग्राम में भी यू.पी.पी.सी.एस. ध्वजा पताका आर्यावर्त में फहर रहा है।
इनमे ग्राम्य युवाओं का दोष नहीं है अपितु स्वत: इनके अभिभावकों का पूर्ण दोष निहित है, ग्राम्य युवाओं/ युवतियों को माननीय श्री डॉ.अनिल कुमार पाण्डेय जी के सम्राज्ञीय यज्ञ के विधि विधान की पौराणिक कथाएं आत्म सार नहीं सुनाया है, तो क्या युवा/ युवती अपने अंदर दबा हुआ वह जोश, ज्वालांओं, प्रतिभा कौशल को उमड़ते उर्मि तरंगों के सामान कैसे परिश्रम पूर्ण कौशल कला प्रतिभा को जन सामान्य से असाधारण पृष्ठ में परिणित हो पाए।
पृष्ठ चेतना में जागृत होना एवम् उनका अनुसरण करना आज सेवटा ग्रामीण में युवाओं में वह चेतना, आत्म शक्ति, संप्रेषण, अभिव्यक्ति, सुषुप्त सा भी अवतरित नहीं जान पड़ता है।
ग्रामीण नव युवाओं का गलत संगत में अभिभावकों के नेत्रों पर एक आवरण चढ़ा दिया है, वह अपने विद्यालय शिक्षा हेतु अपने उद्देश्य हेतु जाता हैं, लेकिन क्या उनका पुत्र चंडेश्वर में श्री दुर्गा जी विश्वविद्यालय एवम् अन्य विद्यालय में अध्ययन हेतु विद्यालय प्रांगण में किस तरह व्यक्तिव व्यवहार, आचरण की सभ्यता, संस्कृतियों, अनुशासन ग्रहण कर रहा हैं, जिस उद्देश्य की पूर्ति हेतु वह विद्यालय जाता है, वह अगर सही पथ पर (अपने उद्देश्य) पर जा रहा है, तो वह कहां तक पहुंचा है, कहीं वह विस्मृतीय भंवर में उलझा तो नहीं है, अगर वह उलझा है तो क्या वह निकल सकता है, कहीं वह पथ भ्रष्ट तो नहीं हो गया है, यह अभिभावकों का दायित्त्व है कि अपने संतान पर जो धन खर्चे कर रहें है, वह श्रम सीकर का घी व्यर्थ तो नहीं हो रहा है।
क्या अभिभावक अपने संतान के प्रति सचेत है या नहीं यह एक प्रश्न का विषय है…?
मेरे ग्रामीण भ्रमण और अपने अनुभवों से लगभग पांच प्रतिशत व्यक्ति अपने संतान के पथ से अवगत हैं, बाकी तो बस कोटा पूर्ति कर रहे हैं, बी.ए., बी.एस.सी., एम.ए. करा कर शहर भ्रमण मात्र बोल चाल तक पढ़ा कर आने जाने तक का जानकारी हो गया बस इतना ही है, उसके बाद उनकी किसी तरह विवाह कर उन्हें अन्य प्रांत या राज्य में जीविकापोर्जन हेतु भेज देते हैं।
ग्रामीण आंचल का यथार्थ है, जो आज सभी ग्रामीण अभिभावकों और युवाओं को स्वीकार करना होगा कि माननीय श्री डॉ.अनिल कुमार पाण्डेय जी द्वारा प्रज्ज्वलित यज्ञ ज्वाला को पुनः अपने श्रम सीकर घी से सम्राज्ञी समिधा ( अपने चेतना, मेहनत, पृष्ठ भूमिका, आत्म मन, संघर्षों) से यज्ञ ज्वाला को तीव्रता पूर्ण प्रज्ज्वलित करना होगा।
शिक्षा का वह प्रणोदक शंख नाद फूकना पड़ेगा, जिससे नवयुवक, युवती युवा पीढ़ियां अपना भविष्य स्वत: निर्माण कर सके, उन्हें किसी जड़ चेतन का आवश्यकता न हो, उनका प्रारम्भिक शिक्षा आधार इतना सुदृढ़ कराएं, जिससे ग्रामीण आंचल में हर गृह से एक दो आई.ए.एस., पी.सी.एस. जज बन अपने ग्राम्य पंचायत अपने जनपद देश में अपना नाम वर्चस्व स्थापित कर सकें।
डॉ.अनिल कुमार पाण्डेय जी के मार्ग का अनुसरण कर नवयुवक युवती युवा पीढ़ियां अपना एक अलग पथ निर्माण कर यह दिखाएं कि सेवटा के युवा युवतियों में वह प्रतिभा है, कि वह भी आई.ए.एस., पी.सी.एस. जज सेना में हो कर देश सेवा का भाव जागृति कर भारत की सबसे किलिष्ट परीक्षा उत्तीर्ण कर सकता है।
इतने बड़े सुगंधित पुष्प का सुगंध ग्रामीण युवाओं को महसूस क्यों नहीं हुआ बहुत ही दुख की बात है कि जिस बगीचा (सेवटा) में इतना सुंदर मनोरम सुगंधित पुष्प होगा उस बाग (सेवटा) के अन्य परौधों में वह विकास नजर नहीं आता है।
आदर्श ग्राम्य जीवन में अपने कर्त्तव्य से दूर भागना, माननीय श्री डॉ. अनिल कुमार पाण्डेय जी के आत्म संघर्ष साहस के प्रेरणा स्त्रोत से अपने संतान से साझा न करना, उसे एक उचित मार्ग दर्शन न देना, ग्रामीण में एक दूसरे से निष्ठुरता सा व्यवहार आचरण प्रस्तुत करना, सत्य को स्वीकृत करना बहुत ही बड़ा आदर्श आचरण साक्ष्य है, इससे दूर हट कर, एक दूसरे से जलन द्वेषता रख कर, पुनर्जागरण पथ निर्माण नहीं कर सकते है, ना सत्य दबा सकते है, यथार्थ से दूर जाकर, मनुष्य अपना भविष्य निर्माण नहीं कर सकता है, अतः आप सभी से निवेदन है कि कितने कठिन परिस्थितियों से जूझते हुए माननीय श्री डॉ अनिल कुमार पाण्डेय जी अपने लक्ष्य तक पहुंचने है, उन्हें प्रेरणा स्त्रोत मान अपने यथार्थ जीवन में एक अंतरिम ऊर्जा स्त्रोत जागृति कर, संघर्ष पथ पर चलना ही अपना कर्त्तव्य है, उनका अनुसरण कर अपना एक नया पथ निर्माण करना होगा।
कवि समाज का दर्पण कहा जाता है, मुझे जो नजर आया वह आप सभी से परोक्ष परोसा हूं, मुझे पूर्ण विश्वास है, कि मेरा ग्राम्य एक बार वही आदर्श ग्राम्य कहलाएगा जो पहले था, युवा पीढ़ियों एवम् अभिभावकों में माननीय श्री डॉ.अनिल कुमार पाण्डेय जी का संघर्ष अवतरित कर एक ज्योत्स्ना प्रज्ज्वलित कर अपना कर्त्तव्य निभाना होगा, तभी जाकर ग्राम्य जन मानस का सपना साकार होगा।
प्रज्ज्वलित तरंगिरिणी, प्रवाह सा युवा हुए
बुजुर्ग के परिचायिका में, युवाओं को दुआ हुए
परिश्रम सीकर धरा पर, आत्मा संतुष्ट हुए
आत्मिक परिवेश में, माननीय श्री डॉ.अनिल कुमार पाण्डेय जी से सजे हुए पृष्ठ हुए।