यकीं तुमने मोहब्बत पर जो दिल से किया होता
कहीं कुछ भी नही है जो तुम्हारी जद के बाहर है
यकीं तुमने मोहब्बत पर जो दिल से किया होता
नजर जाती जहां तक बस दरख्तों की कतारें थी
मुझे उस दौर में मौला कैद कर रख लिया होता
जमी प्यासी गगन जलता ज़ोर कोई नही चलता
बहुत मगरूर है इंसा फिक्र कल की किया होता
जो सूखी लकड़ियां बिनने गयी एक फूल की बेटी
चमन रोया हिफाजत का खुदा जिम्मा दिया होता
यही वहशियत एक दिन जहां को खाक कर देगी
जुल्म की आग से उठते धुंए को पढ़ लिया होता।
देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”