मौत आ जाए मगर ………..
गुफ़्तगू हो शायरी में शायरी में गम न हो
हो इनायत बस खुदा की आँख कोई नम न हो
हो मुहब्बत इस फ़िजा में आसमां हो ख़ुशनुमा
दे सुनाई मुस्कुराहट दर्द का मातम न हो
आरजू का है इजाफ़ा कम न होती प्यास है
पेट भर जाए गरीबी भूक का आलम न हो
सोच लो की भागना है कब तलक यूँ दर्द से
चाह में अच्छे दिनों के हादसे कायम न हो
खूब देखे है नजारे मौत से लिपटे हुए
मौत आ जाए मगर वो जिंदगी से कम न हो
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शशिकांत शांडिले, नागपुर
भ्र.९९७५९९५४५०