— मोह—
मोह कब तक
जब तक आप साथ हैं
मोह कब तक
जब आपके हाथ पतवार है
मोह कब तक
जब तक आप काम के हैं
मोह कब तक
जब तक चिराग जलता है
मोह कब तक
जब तक आप जिन्दा हैं
मोह कब तक
जब तक धन और तन पास है
मोह कब तक
जब तक सामन बाकी है
मोह कब तक
जब तक जिम्मेवारी सर पर है
मोह तब तक बरकरार है
जब तक खून गर्म है
वक्त की आन्धी ने मिटा दिया
बड़े बड़े मोह करने वाले
रिश्ते बस तब तक होते हैं
जब तक डोर न टूटे
अजीत कुमार तलवार
मेरठ