मोहिनी सूरत……….
मोहिनी सूरत……….
देख के उसकी मोहिनी सूरत, फूल भी खिलना भूल गये !
ख्वाबो में उसके ऐसा उलझे, खुद से मिलना भूल गये !!
कब आई और वो आकर चली गई
उसे देख आँखे से ज्योति चली गई
न जाने कैसा जादू उसने फेरा
कि हम जगह से हिलना भूल गये !!
देख के उसकी मोहिनी सूरत, फूल भी खिलना भूल गये !
ख्वाबो में उसके ऐसा उलझे, खुद से मिलना भूल गये ।।
वो सांवरी – सलोनी सी थी
चंचल चितवन स्वामिनी थी
पास से गुजरी जब दामिनी सी
हम साँसे गिनना भूल गये !!
देख के उसकी मोहिनी सूरत, फूल भी खिलना भूल गये !
ख्वाबो में उसके ऐसा उलझे, खुद से मिलना भूल गये !!
खुदा की नायाब जादूगरी,
थी उसमे कूट – कूट भरी
ऩजरे उठाकर जिसने भी देखा
फिर वो रब से मिलना भूल गये !!
देख के उसकी मोहिनी सूरत, फूल भी खिलना भूल गये !
ख्वाबो में उसके ऐसा उलझे, खुद से मिलना भूल गये !!
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डी. के. निवातियाँ _________@