मोहरा
वे जब भी मिलते हैं बड़े प्यार से मिलते हैं।
मैं भी उन्हें सम्मान देता हूँ-
बड़े भाई सा।
लेकिन उन्होंने किया है मेरा उपयोग सदैव-
एक मोहरे की तरह।
वे जब मेरा जैसा उपयोग चाहते हैं,
मुझे इंगित कर देते हैं और मैं उनकी चाहत जैसा-
व्यवहार करने लगता हूँ।
भीड़ में कर लेता हूँ उनके चरण स्पर्श।
मेरे चरण स्पर्श करते ही लोगों का लग जाता है ताँता-
उनके चरण स्पर्श करने को।
उनके इशारे पर, जब वे उचित समझते हैं,
मैं उन्हें पहना देता हूँ फूलों का हार-
और वहाँ फूलों के हारों का ढेर लग जाता है।
आवश्यकता पड़ने पर मैं उनका नाम लेकर-
जोर जोर से जिंदाबाद के नारे भी लगा देता हूँ।
प्रत्युत्तर में उनके जिंदाबाद के नारों से-
परिसर गुंजायमान हो जाता है।
जयन्ती प्रसाद शर्मा