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12 Mar 2022 · 1 min read

मोहब्ब्त को कौन समझा है।

मोहब्बत को कौन समझा है हमको मिलाओ उससे।
हमारे मिलने वालों में तो कोई भी ना समझा हैं इसे।।1।।

यूं आलिमों को इश्क ने बना दिया काफिरों के जैसे।
ना जानें कितने आशिक़ बन गए किताबों के हिस्से।।2।।

अल्फाजो से मत समझना यूं शेर ओ शायरी को तुम।
लिखता है वो एहसासों को खुद पे बीते हुए किस्से।।3।।

अब जाकर कही मुकाम मिला है उसको कारोबार में।
वह तजुर्बे कार बन गया है बाजारों में खाके धक्के।।4।।

यूं बड़ा ही वकार था उनको अपनें सादे किरदार पर।
अब देखो मजनूं बने फिरते है वह यहां पे बड़े पक्के।।5।।

कितने मासूम थे वही सभी बस लगे रहते थे काम में।
प्यार में अच्छे खासे इंसान भी बन जाते हैं निकम्मे।।6।।

ताज मोहम्मद
लखनऊ

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