मोलभाव
मोलभाव
“मिट्टी के दीए कैसे दिए भैया ?” मिसेज शर्मा ने पूछा।
“बारह रुपए में एक दर्जन मैडम जी।” कुम्हार बोला।
“बारह रुपए ? दस लगाओ न, पाँच दर्जन ले लूँगी।” मिसेज शर्मा ने ऑफर दिया।
“उतना कम नहीं हो पाएगा मैडम जी।” कुम्हार ने कहा।
“क्या भैया, आप तो दो रुपए भी कम नहीं कर रहे हो।” मिसेज शर्मा बोलीं।
“मैडम इसी दो रुपए में मेरा परिवार पलता है।” कुम्हार ने अपनी विवशता बताई।
कुछ सोचकर मिसेज शर्मा बोलीं, “चलो ठीक है। ये रखो एक सौ बीस रुपए और पैक कर दो दस दर्जन।”
“ठीक है मैडम जी। ये लीजिए आपके दीए।” कुम्हार ने प्रसन्नतापूर्वक कहा।
“भैया मैंने दस दर्जन माँगे थे। आपने ग्यारह दर्जन दे दिया है।” मिसेज शर्मा बोलीं।
“मैडम जी, आपने मेरी बात रख ली। मेरा भी फर्ज बनता है कि मैं अपने ग्राहक के हितों का ध्यान रखूँ।” कुम्हार उत्साहित होकर बोला।
“थैंक्यू भैया। आज आपने मेरी आँखें खोल दी है। मोलभाव करना अच्छी बात है, पर हर जगह नहीं। मोलभाव करने वाले को पहले यह जरूर विचार करना चाहिये कि वह किस चीज के लिए और किससे कर रहा है।” मिसेज शर्मा बोलीं और आगे बढ़ गईं।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़