मोम बनूँ मै
कविता-मोम बनूँ मैं
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भाव मिले तो, रख लो मुझको,
घाव दिखे तो, भेषज जानों मुझको,
कुछ भी हो, जब जीवन में सुन
पान समझकर,खाओ या चढ़ाओ मुझको,
पूजा की थाल बनूंगा,
तुम बाती मैं दीप बनूंगा,
मैं मोम बनूँ,तुम बनो उजाला,
तुम पहनो जूती,मैं चाम बनूंगा,
मोती हो तुम, धागा बनूँ मैं,
बोली हो तुम,जिह्वा बनूँ मैं,
कोयल बनो तो,मौसम बनूंगा,
तुम बिंदी हो तो,मैं भाल बनूंगा,
चाल तुम्हारी,पाव बनूंगा,
स्नान के लिए,कहार बनूंगा,
मुझसे लड़कर जाने वाली,
सपना हिचकी बनकर परेशान करूंगा,
दोनों हाथ से ताली बजे,
बिन बाती ना दीप जले,
बिन होठ के ना बंसी बजे,
फिर क्यों तुम मुझसे लड़ती हो,
बिना तुम्हारे ना परिवार चले,
तुम घर की रानी,लक्ष्मी-शोभा,
तुम घर की प्रानी ढ़ोती बोझा,
माफी दे दो-माफी ले लो जान हमारी
आओ मिलके परिवार चलाएं,खाएं बनाएं गोझा
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नाम-ऋषि कुमार ‘प्रभाकर’