मै तो हूं मद मस्त मौला
मैं तो हूं मद मस्त मौला,
मुझे दुनिया की क्या फिकर।
अरे नादान तू कहां फंसा है,
ऐसी उधेड़बुन में,
निकलना है तो आ चल निकल।
मै तो हूं . . . . . .
बेबस आंखें जब देखती है,
तीर सवालों की जब भेदती है।
तब एहसास होता है उन जख्मों का,
उसे मरहम भी कहां मेटती है।
अरे नादान तू कहां फंसा है ,
ऐसे रहमो करम में,
अपनी किस्मत को अब तू ही बदल।
मै तो हूं . . . . . .
इस दुनिया में भी, अजब लोग हैं,
अच्छाईयों में भी ढुंढते दोष है।
अच्छाई बुराई की परख तो है,
पर अंधभक्ति में मदहोश हैं।
अरे नादान तू कहां फंसा है,
ऐसे ताने बाने में,
शतरंज जैसी कोई चाल तो अब चल।
मै तो हूं . . . . . .
जहां भी देखूं नजर उठाकर,
लोग बड़े ही निराले हैं।
गोरे तन से सुन्दर दिखे पर,
मन के बड़े ही काले हैं।
अरे नादान तू कहां फंसा है,
ऐसे हिन करम में,
तेरे कर्म का लेखा जोखा अब तू ही बदल।
मै तो हूं. . . . . .