मै जलियांवाला बाग बोल रहा हूं
मै जलियाँ वाला बाग बोल रहा हूँ,जालिम डायर की कहानी सुनाता हूँ |
निहत्थो पर गोली चलाई थी,मरने वालो की चीखे सुनाता हूँ ||
चश्मदीद गवाह था मै यह सब कुछ द्र्श्य वहां देख रहा था |
मेरे आँखों में आँसू थे,पर डर के मारे न बोल रह रहा था ||
13 अप्रैल 1919 बैशाखी का दिन था,यहाँ काफी वीर सपूत आये थे |
रोलेट एक्ट के विरोध में ,ये सब मीटिंग करने यहाँ पर ये आये थे ||
सौ वर्ष के बाद भी आज उनकी चीखे सुनाई देती है |
उनकी आत्मायें भी आज सपनों में कुछ कह देती है ||
उधम सिंह था एक देश भक्त जिसने ख़ूनी डायर को मारा था |
चने चबाते चबाते लन्दन में उसने घर में घुस कर मारा था ||
उधम सिंह 11 साल का बालक था,जब उसने ये घटना देखी थी |
कसम खाई उसी दिन उसने जनरल डायर को मारने की ठानी थी ||
करता रहा 21 साल तक कोशिश,गरीब वह अपने घर से था |
मेहनत मजदूरी कर कर के वह पहुचा लन्दन उसके घर में था ||
चलाई तीन गोलियां डायर पर जब वह बदला ले लिया बोल रहा था |
कर दिया सरेंडर अपने आप को उसने अपने जीवन से खेल रहा था ||
आर के रस्तोगी गुरुग्राम