मैथिली कविता
दुख दिवस दीन संकट देखूँ।
हँ अछि अनहार विकट देखूँ।
मन द्वंद सँ लड़ि रहल ऐसगर
सभ आंँखिक में आयि प्रकट देखूँ।
निश्छल मन प्रेम उपासक बनि..
पथ पर पसरल कंटक देखूँ।
गेलेय जान केकर गेला सँ
जग भरि पसरल नाटक देखूँ।
अक्षर अक्षर प्रेम बसौलक
अछि कवि मन लम्पट देखूँ।
दीपक झा “रुद्रा”