मैं स्वयं को भूल गया हूं
जीवन की आपा धापी में, निज कदमों से दौड़ रहा हूं।
प्रारब्ध और निज कर्म धरा पर, जन्म जन्म से भोग रहा हूं।।
कौन हूं मैं? और क्यों आया?, नहीं आज भी सोच रहा हूं।
निरुद्देश्य निज कामनाओं में,विना विचारे भाग रहा हूं।।
सुत दारा और धन वैभव, प्रसिद्धि ढूंढ रहा हूं।
क्यों आया हूं नर तन में? मैं बिलकुल भूल गया हूं।।
नश्वर काया नश्वर माया में, जन्म जन्म से भटक रहा हूं।
क्या ईश्वर क्या धर्म-कर्म, नहीं आज भी समझ रहा हूं।।
कहां से आया?कहां है जाना?,न जाने क्या ढूंढ रहा हूं।
आहार मैथुन निंद्रा इच्छा में,पशुवत होकर घूम रहा हूं।।
विन गुरु ज्ञान विवेक रहित, उत्तम योनि फल भूल गया हूं।
आत्म और परमात्म ज्ञान, मैं स्वयं को भूल गया हूं।।
सुरेश कुमार चतुर्वेदी