मैं स्त्री हूं भारत की।
मैं स्त्री हूं भारत की
मुझे देवी यहां कहा जाता है,
बचपन से ही कन्या रूप में
देवों सा मुझे पूजा जाता है ।
सच कहूं तो झूठ है ये
मुझको बस छला जाता है ,
निज स्वार्थ पूर्ण करने हेतु
मुझ को बस ठगा जाता है ।
झांसा देकर प्रेम का मुझको
मेरा अधिकार छीना जाता है ,
कुल के दीपक के लिए सदा क्यों
बेटी से त्याग कराया जाता है।
यौवन में मेरे कोमल मन को
प्रेम नाम पर भटकाया जाता है
काम वासना पूरी कर अपनी
मझधार में मुझे छोड़ा जाता है ।
बहू बना लक्ष्मी रूप में
जब घर में मुझे लाया जाता है,
सूरत सीरत अनदेखा कर मेरा
सिर्फ दहेज को आंका जाता है।
मां बनकर तो स्त्री मन सदा
खुद को ही छले जाता है,
बच्चे का सुख देखकर अपना
हर दुख भूल सा जाता है ।
लेकिन स्त्री के अस्तित्व पर उस
दिन प्रश्नचिन्ह सा लग जाता है,
भरी सभा में बार-बार जब
द्रोपदी का चीर हरा जाता है।
सारे त्याग-सारे संस्कार
निरर्थक हो जाता हैं,
स्त्री गर्भ से ही जन्मा कोई
स्त्री को अपमानित कर जाता है।
मन में मेरे बस एक ही प्रश्न
अब बार बार उभर आता है,
हे ईश्वर! तू कहां छुपा है,
तुझ से ये सब कैसे देखा जाता है?
(मणिपुर घटना से आहत)
लक्ष्मी वर्मा ‘प्रतीक्षा’
खरियार रोड ओड़िशा।