” मैं सोचूं रोज़_ होगी कब पूरी _सत्य की खोज”
न रोटी की भूख _ न ही पानी की प्यास मुझे ।
सच्चाई खोजने निकला मिलेगी आस मुझे ।।
वादा कर रब से आया_ धरती पर भेजो मुझे ।
जन्म लिया भूल गया करना क्या था यहां मुझे ।।
उम्र बढ़ती गई मदहोशी जमाने की चढ़ती गई ।
अचानक ख्याल आया सच पर चलना था मुझे ।।
तब से ही तो सच्चाई को ढूंढ रहा मैं गली गली ।
जहां गया सच बताया एक भी न मेरी चली ।।
नाता मैने सबसे तोड़ा _ खुद को खुद से जोड़ा ।
पथिक बन सच्चा सच ही तो तलाशना था मुझे।।
मैं अकेला चलता रहा चलता हां चलता रहा ।
सच पाने का सपना जो था मेरा पलता रहा ।।
आख़िर वह मुकाम आया मैं समझ पाया ।
अदृश्य “ईश्वर”से बड़ा कोई सच नहीं है ।।
नाते अनेक है पर “ईश्वर” से नाता नेक है ।
अखिल ब्रह्मांड में सिर्फ वही सत्य है ।।
मुझे मेरा अंतिम लक्ष्य सत्य मिल गया ।
मन लगा ईश्वर चरणो में मन खिल गया ।।
राजेश व्यास अनुनय