मैं मज़दूर हूँ
मिट्टी से जन्मा हूँ, मिट्टी में ही रहता हूँ।
मिट्टी ही हूँ, बस मिट्टी का ही खाता हूँ।
सुख सुविधा से कोसों दूर हूँ।
हाँ मज़दूर हूँ, मैं मज़दूर हूँ …
खून को पसीना समझ कर बहाता हूँ।
प्यास लगे तो पसीना ही पी जाता हूँ।
किस्मत से ही मज़बूर हूँ।
हाँ मज़दूर हूँ, मैं मज़दूर हूँ …
अनाज पैदा कर सभी का पेट भरता हूँ।
पर विडंबना मेरी ख़ुद भूखे सो जाता हूँ।
थकान से हो जाता चूर हूँ।
हाँ मज़दूर हूँ, मैं मज़दूर हूँ …
हर सुबह बाज़ार में सामान बने बिकता हूँ।
बिका तो उस दिन की कमाई घर लाता हूँ।
मज़दूरी से हर जगह मशहूर हूँ।
हाँ मज़दूर हूँ, मैं मज़दूर हूँ …
मज़दूरी के पथ पे आये हर खतरों को झेलता हूँ।
ज़िन्दगी मौत से हर दिन लुका छुपी खेलता हूँ।
तभी तो अपने देश का कोहिनूर हूँ।
हाँ मज़दूर हूँ, मैं मज़दूर हूँ …
मज़दूर दिवस और चुनाव में मुद्दा बन जाता हूँ।
पर सालों भर कसरत से भुला दिया जाता हूँ।
यही सोच कर बस मग़रूर हूँ।
हाँ मज़दूर हूँ, मैं मज़दूर हूँ …