मैं भटकता ही रहा दश्त-ए-शनासाई में
ग़ज़ल
मैं भटकता ही रहा दश्त-ए-शनासाई में
कोई उतरा ही नहीं रूह की गहराई में
क्या मिलाया है बता जाम-ए-पज़ीराई में
ख़ूब नश्शा है तेरी हौसला-अफ़जाई में
तेरी यादों की सुई, प्रेम का धागा मेरा
काम आये हैं बहुत जख़्मों की तुरपाई में
डस रही है ये सियह-रात की नागिन मुझको
भर दिया ज़हर-ए-ख़मोशी, रग-ए-तन्हाई में
सुर्मा-ए-मक्र-ओ-फ़रेब आँखों में जब से है लगा
तब से है ख़ूब इज़ाफ़ा हद-ए-बीनाई में
फ़िक्र-ओ-फ़न, रंग-ए-तग़ज़्ज़ुल, न ग़ज़ल की ख़ुशबू
बस लगा रहता हूँ मैं क़ाफ़िया-पैमाई में
सीख पानी से हुनर काम अनीस आएगा
दौड़ कर ख़ुद ही चला आता है गहराई में
– अनीस शाह अनीस