मैं पतझड़ की पाती, तुम हो उपवन का फूल
मैं पतझड़ की पाती, तुम हो उपवन का फूल !
दे देना हमको माफ़ी, जो हो जाए हमसे भूल !!
मै गाँव का देशी छोरा
तुम ठहरी शहरी मेम,
वार्ता का ढंग न जानूं
तुमसे हो जाता हूँ फेल
हँसी मजाक में भी बोलू
तुमको लग जाता शूल !!
दे देना हमको माफ़ी, जो हो जाए हमसे भूल !!
मन में जो भी मेरे आता
बिन सोचे मैं कह जाता हूँ
पढ़ी लिखी समझ के आगे
बुद्धू बनकर रहा जाता हूँ,
जैसा भी हूँ अब तेरा हूँ मैं,
बना लेना अपने अनुकूल !!
दे देना हमको माफ़ी, जो हो जाए हमसे भूल !!
सच है की तुमसे ये जीवन
सुंदर बना मेरा घर संसार,
तुम मूरत हो मन मंदिर की,
मिलता अटूट अमिट प्यार ,
प्रेम का क़र्ज़ प्रेम से चुकाना
है अपना तो बस यही उसूल !!
दे देना हमको माफ़ी, जो हो जाए हमसे भूल !!
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स्वरचित: डी के निवातिया