मैं नारी हूँ, मैं जननी हूँ
मैं नारी हूँ, मैं जननी हूँ। मैं माँ जगदंबा भवानी हूँ॥
न बांध मुझे मर्यादा में,
न संस्कार की डोरी से,
ना ममता की जंजीरों में,
स्वछंद विचरने दे जग में,
मैं अबला नहीं सबला हूँ । मैं नारी हूँ, मैं जननी हूँ ॥
न डर है भुत बैतालों का,
न अंधे कामुक हत्यारों का
संहार करुंगी अत्याचारों का
पशुवत नर चंडालों का
मैं दुर्गा हूँ, रण चंडी हूँ। मैं नारी हूँ, मैं जननी हूँ॥
न बिकती हाट बजारों में
न गली – गली चौबारों में
पान करा स्तन का अमृत
भरती शक्ति मैं प्राणों में
मैं काली हूँ, मैं चण्डी हूँ। मैं नारी हूँ, मैं जननी हूँ॥
मैं सृष्टि की आदिशक्ति
मुझसे उत्पन्न सारा जहां
मुझमें ही आकर मिलता है
जग में कुसुम सा खिलता है
मैं प्रकृति हूँ, मैं सृष्टि हूँ। मैं नारी हूँ, मैं जननी हूँ॥
नारी ने सहा बहुत अपमान
अब नहीं सहेगी बनेंगी महान
मिले प्रतिष्ठा बने पहचान
चाहे आयें कितने तूफान
मैं लक्ष्मी हूँ, मैं शारदा हूँ। मैं नारी हूँ, मैं जननी हूँ॥
बोलने लगे स्वप्न निर्जीव
मेरे प्रतिभा से जग प्रदीप्त
झुका पद में पुरुष अजेय
जैसे रजनी में ज्योति उदीप्त
मैं सीता हूँ, मैं गीता हूँ। मैं नारी हूँ, मैं जननी हूँ॥
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