नन्हा घुघुट (एक पहाड़ी पंछी)
मैं नन्हा घुघुत पहाड़ों का
हिम के श्वेत आभाओं का
तेज लेकर उड़ रहा हूं
आज दशों दिशाओं का
प्रेम सरोवर की गाथाएं
निर्जन वन की लताएं
अटल चित के आनंद को
व्याकुल समय के फेरे को
पर्ण सहज सुन जाती है
पंख मेरे अविराम चले हैं
पर्वत की चोटी से आकर
चंद कदम विराम लिए हैं
अब तो जन–जन जाना है
निर्झर मोती ही गाना हैं
बिखेरकर खुशबू पहाड़ों की
इस नन्हें घुघुत को गाना हैं