मैं तुम और ये अनन्त व्योम
मैं तुम और
हमारे बीच फैला
ये अनन्त व्योम
मैं जानती हूँ
पसंद है तुम्हें
ये हल्का नीला सा
आसमान
जिसमें बीच बीच
सफेद बादलों के
पैबंद टके हुए हो
कभी कभी ये पैबंद
कपास के फूलों से
उड़ते फिरते हैं
इधर उधर
मैं यह भी जानती हूँ
पसंद हैं तुम्हें
तपते से सूरज को
जब ये
धुनी रुई से
ढ़क लेते हैं
कुछ पल के लिए
पर तुम
ये कभी नहीं जान पाए
कि
इन्हीं पैबन्दों से
धागे चुरा कर
इंद्रधनुष के
रंगो से रंग कर
बुनती हूँ
अपने ख़्वाबों की
एक लम्बी चादर
तुम ये भी नहीं जानते
जब ये कपास के फूल
ढ़क रहे होते हैं
उस हठीले सूरज को
ठीक उसी समय
मैं उसकी किरणों के
धागे भी चुरा लेती हूँ
उसी से ही तो
बुनती हूँ
चमकते,सुनहरे फूल
बिल्कुल सितारों से
हर रात
और टांक देती हूँ
उन्हें अपनी चादर में
और बिछा देती हूँ
हर उस रात समूचे
आसमान में
जिस दिन वो चाँद नही आता
इस उम्मीद से
कि शायद तुम आओ
मुझसे मिलने
और अंधेरा देख कर
लौट न जाओ
और वो पगला चाँद
हर रात
चौकीदारी करता है
अपने सितारों की
मुझे चोर समझता है
पर वो नहीं जानता
मैं इतनी बड़ी चोर कहाँ हूँ
जो चुरा लूँ
आसमान से सारे सितारे
और टांक दूँ
तुम्हारे मन की
चादर में
यह बस में नहीं मेरे,,