मैं तुम्हें देखता हूं
मैं तुम्हें देखता हूं हृदय, के अमृत घट में
तुम्हें ही देखता हूं प्रकृति की सहज छवि में
तुम्हें ही देखता हूं, चांद और सितारों में
तुम्हें ही देखता हूं, बाग और बहारों में
मैं तुम्हें ही देखता हूं, गंगा और जमन जल में
तुम्हें ही देखता हूं, बच्चों के निर्मल मन में
तुम्हें ही देखता हूं, बंसी के मधुर स्वर में
तुम्हें ही देखता हूं, फूलों के विविध रंग में
तुम्हें ही पूजता हूं, हृदय मंदिर और घट घट में
मैं तुम्हें ही देखता हूं, पक्षियों के गुंजन में
तुम्हें ही देखता हूं, फूल की भीनी महक में
और तुम्हें ही देखता हूं, हर कली गुलशन बनों में
तुम्हें ही देखता हूं, धरती और असीमित गगन में
तुम हो मेरी जिंदगी, मंजिल हो मेरी आखरी
मैं हूं दरिया प्रेम का, तुम समंदर प्रेम के
तुम अमर हो आत्मा, मैं नश्वर तुम्हारी देह हूं
तुम हो मेरी जिंदगी, चाहूंगा तुमको उम्र भर
मैं हूं राही प्रेम का, तुम हो मंजिल प्रेम की
तुम गगन हो प्रेम के, मैं हूं पंछी प्रेम का
तुम हो मेरी बंदगी, वंदन करूंगा उम्र भर
जिधर भी जाती नजर, मैं तुम्हें ही देखता हूं