मैं गीत उदय का गाता हूं
मैं गीत उदय के गाता हूं
नियती पर बैठ विलाप करूं
या कल पर पश्चाताप करूं
जो चाहत थी कितना पाया
या सोचूं अबतक क्या खोया
ऐसे दुख के अनुदेशों को
खुद पर हावी होने दूं क्या
अपने कल की परिचर्चा में
आनेवाला कल खो दूं क्या
कल यूं होता तो ये पाता
कल यूं होता तो वो पाता
ऐसे वैसे किसी चिंतन को
अंगीकार नहीं कर पाता हूं
मैं अरुणोदय का बेटा हूं
मैं गीत उदय का गाता हूं
हाथों पर हाथ धरे बैठूं
निरर्थक परिचर्चा पर ऐंठूं
सुरज के जगते मैं सोयूं
या अपनी किस्मत पर रोऊं
ताने दूं भाग्य विधाता को
या कोसूं अपने धाता को
या कर कर के छद्म विलाप
शर्मिंदा कर दूं दाता को
पाना खोना मंजूर मुझे
रोना धोना मंजूर नहीं
मैं आलस्य को मन-मस्तिष्क पर
स्वीकार नहीं कर पाता हूं
मैं अरुणोदय का बेटा हूं
मैं गीत उदय का गाता हूं
करता हूं खुद को लयबद्ध
मैं पौरूष के सुर-तालों से
इतिहास बदलने आया हूं
खुद के मेहनत के ढ़ालों से
गर मुट्ठी में कैद मेरी किस्मत
तो मुट्ठी भी तो मेरी है
दुनिया कदमों में आयेगी
बस कुछ दिन की अब दूरी है
आंखों में लेकर एक लक्ष्य
कर्म-पथ पर चलता हूं अविरत
आनेवाली बाधाओं से
मैं किंचित नहीं घबड़ाता हूं
मैं अरुणोदय का बेटा हूं
मैं गीत उदय का गाता हूं
:- अभिषेक झा
मुजफ्फरपुर (बिहार)