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8 Apr 2022 · 1 min read

मैं गीत उदय का गाता हूं

मैं गीत उदय के गाता हूं

नियती पर बैठ विलाप करूं
या कल पर पश्चाताप करूं
जो चाहत थी कितना पाया
या सोचूं अबतक क्या खोया
ऐसे दुख के अनुदेशों को
खुद पर हावी‌ होने दूं क्या
अपने कल‌ की परिचर्चा में
आनेवाला कल‌ खो दूं क्या
कल यूं होता तो ये पाता
कल यूं होता तो वो पाता
ऐसे वैसे किसी चिंतन को
अंगीकार नहीं कर पाता हूं

मैं अरुणोदय का बेटा हूं
मैं गीत उदय का गाता हूं

हाथों पर हाथ धरे बैठूं
निरर्थक परिचर्चा पर ऐंठूं
सुरज के जगते मैं सोयूं
या अपनी किस्मत पर रोऊं
ताने दूं भाग्य विधाता को
या कोसूं‌ अपने धाता को
या कर कर के छद्म विलाप
शर्मिंदा कर दूं दाता को
पाना खोना मंजूर मुझे
रोना धोना मंजूर नहीं
मैं आलस्य को मन-मस्तिष्क पर
स्वीकार नहीं कर पाता हूं

मैं अरुणोदय का बेटा हूं
मैं गीत उदय का गाता हूं

करता हूं खुद को लयबद्ध
मैं पौरूष के सुर-तालों से
इतिहास बदलने आया हूं
खुद के मेहनत के ढ़ालों से
गर मुट्ठी में कैद मेरी किस्मत
तो मुट्ठी भी तो मेरी है
दुनिया कदमों में आयेगी
बस कुछ दिन की अब दूरी है
आंखों में लेकर एक लक्ष्य
कर्म-पथ पर चलता हूं अविरत
आनेवाली बाधाओं से
मैं किंचित नहीं घबड़ाता हूं

मैं अरुणोदय का बेटा हूं
मैं गीत उदय का गाता हूं

:- अभिषेक झा
मुजफ्फरपुर (बिहार)

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 279 Views
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