कल आंखों मे आशाओं का पानी लेकर सभी घर को लौटे है,
हुनर
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
कई आबादियों में से कोई आबाद होता है।
त्याग समर्पण न रहे, टूट ते परिवार।
आदमी बेकार होता जा रहा है
पड़ोसन की ‘मी टू’ (व्यंग्य कहानी)
"कहानी मेरी अभी ख़त्म नही
टूटा हूँ इतना कि जुड़ने का मन नही करता,
Dictatorship in guise of Democracy ?
दूरियां ये जन्मों की, क्षण में पलकें मिटातीं है।
मिले
DR. Kaushal Kishor Shrivastava
*कोटि-कोटि हे जय गणपति हे, जय जय देव गणेश (गीतिका)*
प्रभु के प्रति रहें कृतज्ञ
मासुमियत - बेटी हूँ मैं।
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी