**मैं क्या करूं ** __ कविता
चाहत तो यही थी _ प्यार सबका पाऊं।
कोई फिर भी न चाहे तो **मैं क्या करूं**
पढ़ाता तो सभी को मैं __ अपना सब कुछ देकर।
शिष्य कोई समझे ही नहीं तो ** मैं क्या करूं**
बोलना तो सोच समझ कर ही चाहिए सबको।
बेवजह ही कोई बोल जाए तो ** मैं क्या करूं**
मसले तो और भी बहुत कुछ है लिखने _ बताने को।
जितने लिखे परिवर्तन उनने न आए तो मैं क्या करूं
राजेश व्यास अनुनय