मैं कौन हूँ?मेरा कौन है ?सोच तो मेरे भाई…..
बैठे-बैठे मन से एक दिन, एक आवाज आई
मैं कौन हूँ ? मेरा कौन है? सोच तो मेरे भाई
जो नित्य है, वो मैं हूँ , जो है अनित्य, नही मेरा
शरीर जड़ ,संसार जड़ ,ये सब कुछ नही तेरा
हर पल जो छूट रहा है, उसे असत है कहते
जो न छोड़े साथ कभी भी, सत उसे है कहते
रिश्ते -नाते ,धन- दौलत, और देह ये तेरा
रहेंगे ना साथ हमेशा फिर भी मोह ने घेरा
चैतन्य के अंश ने, रिश्ता जड़ से जोड़ लिया
है कैसी ये भूल ,भूल ने स्वरूप से दूर किया
सुख -दु:ख का कारण है ,बस ये ही अज्ञान
मैं देह हूँ,देह ये मेरा, ना आत्म स्वरूप का ज्ञान
चैतन्य के अंश का कभी ना, जड़ से संबंध होता
सच्चिदानंद का अंश हो के भी हर दिन रहता रोता
जिस दिन ये भ्रम का पर्दा ,बुद्धि से हट जाएगा
तत्क्षण ,परमात्मा का अनुभव उसी समय हो जाएगा
©ठाकुर प्रताप सिंह “राणाजी”