मैं कवि होकर केवल कवि का फर्ज निभाता हूँ
अत्याचारी कुटिलों को मैं, आँख दिखाता हूँ ।
दुखियारी आँखों के काजल, को बहलाता हूँ ।
मैं कवि होकर, केवल कवि का, फर्ज निभाता हूँ….।।टेक।।
जब जीवन की राह कटीली, चुभने लगती है ।
स्वाभिमान की चोट सफर में, दुखने लगती है ।
तब नीरस पथ पर आशा के, दीप जलाता हूँ…..
मैं कवि होकर ……….।।
जब रिश्तो की पुरवाई भी, मन बहलाती है ।
जब सांसों की लड़ी गैर से, भी जुड़ जाती है ।
तब दिल के कहने पर अपनी, कलम उठाता हूँ..
मैं कवि होकर, केवल कवि का, फर्ज निभाता हूँ ।।
जब पल भर का साथ कई,जन्मो का लगता है ।
जब पलकों में किसी और का, सपना पलता है ।
तब धड़कन के गीत सहज, कविता में गाता हूँ….
मैं कवि होकर…………।।
जब पौधे बरगद को तनकर, आँख दिखाते हैं ।
जब पंखों को पाकर पंछी, भी उड़ जाते हैं ।
तब बूढ़े तन पर कोमलता, से सहलाता हूँ …
मैं कवि होकर………।।
जब सरहद पर सैनिक अपना, खून बहाता है ।
जब जीवन आधे रस्ते में, ही रुक जाता है ।
तब उस गौरवशाली पथ पर, शीश नवाता हूँ…
मैं कवि होकर………….।।
राजनीति जब लोकतंत्र पर, हावी होती है ।
भ्रष्ट और कुत्सित लोगों को, संसद ढोती है ।
तब बनकर कौटिल्य धर्म की, नीति सिखाता हूँ….
मैं कवि होकर…………।।
भूँख गरीबी लाचारी जब, सिसकी लेती है ।
जब दौलत सूनी आँखों पर, चुटकी लेती है ।
तब कुदरत की इस अनदेखी, से लड़ जाता हूँ…..
मैं कवि होकर……….।।
जब हंसों की जगह गिद्ध, आकर जम जाते हैं ।
आरक्षण के बल पर प्रतिभा, को धमकाते हैं ।
तब भारत की दीन दशा पर, कलम चलाता हूँ….
मैं कवि होकर…………।।
संबिधान की गरिमा चौसर, जब हो जाती है ।
न्याय द्रोपदी स्वयं युधिष्ठिर, से घबराती है ।
तब हाथों में कृष्ण सरीखे, चक्र उठाता हूँ…
मैं कवि होकर………….।।
जब अर्जुन कर्तव्य मार्ग से, विचलित होता है ।
धर्म युद्ध में धर्म, मोह के, पथ में खोता है ।
तब मैं व्यास रूप में गीता, सार सुनाता हूँ…..
मैं कवि होकर……….।।
जब ज्ञानी मद में अभिमानी, रावण बन जाये ।
सुचिता का अनुगामी जिद पर, जब भी अड़ जाये ।
तब दुनिया को रामायण की सीख सिखाता हूँ…..।
मैं कवि होकर………..।।
राहुल द्विवेदी ‘स्मित’