मैं उसका और बस वो मेरा था
मैं उसका और बस वो मेरा था
कोई और ना ख्वाहिश थी हमारी
बाकी हर ओर अंधेरा था
सवेरा जब हुआ जब वो आया था
सूरज नहीं था मगर रोशनी वही लाया था
वो जुड़ा था मुझसे जब मैं टूट रहा था
जीवन की डोर अपने हाथों से छोड़ रहा था
उसने थामा मुझे जब मुझे सहारे की तलाश थी
वो थी जब तक मेरी जिंदगी मेरे पास थी
उसने मेरी उदासी को मुस्कान बना दिया
मेरी चुप्पी को उसने हंसना सीखा दिया
जिसको दुनिया ने ठुकराया उसे अपनाया था उसने
अपनों से लड़ी मगर मुझ अंजान को अपना बनाया था उसने
मुझ बदनसीब के खातिर वो सबकुछ छोड़ आई थी
मेरे खातिर अपने अपनों से भी मुंह मोड़ आयी थी
पता नहीं क्या देखती थी मुझमें जो मुझे अपनी दुनिया कहती थी
अपने सारे सुख छोड़ मेरे सारे दुख सहती थी
ना जाने क्या देखा था उसने जो कोई ओर नहीं देख पाया
शायद उस खुदा ने उसे मेरी जिदंगी का मसीहा बनाया
मेरे हर सुख और दुख का सहारा थी वो
मेरे खुले आसमान का तारा थी वो
उसे पता था उसके बिना मैं टूट जाऊंगा
उसे खोकर मैं भी ये जीवन जी नहीं पाऊंगा
शायद इसीलिए जाते जाते भी मुझसे एक वादा ले गई
खुद मर रही थी मगर मेरे जीने की दुआ कह गई
अब जी तो रहा हूं मगर वो बात नहीं हैं
तन तो हैं मगर रूह साथ नहीं हैं
अब इंतजार उस पल का जब मेरी रूह आजाद होगी
इस दुनिया ना सही उस दुनिया में तो उससे मुलाकात होगी
“एकांत”