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21 Jan 2023 · 2 min read

मैं उसका और बस वो मेरा था

मैं उसका और बस वो मेरा था
कोई और ना ख्वाहिश थी हमारी
बाकी हर ओर अंधेरा था
सवेरा जब हुआ जब वो आया था
सूरज नहीं था मगर रोशनी वही लाया था
वो जुड़ा था मुझसे जब मैं टूट रहा था
जीवन की डोर अपने हाथों से छोड़ रहा था
उसने थामा मुझे जब मुझे सहारे की तलाश थी
वो थी जब तक मेरी जिंदगी मेरे पास थी
उसने मेरी उदासी को मुस्कान बना दिया
मेरी चुप्पी को उसने हंसना सीखा दिया
जिसको दुनिया ने ठुकराया उसे अपनाया था उसने
अपनों से लड़ी मगर मुझ अंजान को अपना बनाया था उसने
मुझ बदनसीब के खातिर वो सबकुछ छोड़ आई थी
मेरे खातिर अपने अपनों से भी मुंह मोड़ आयी थी
पता नहीं क्या देखती थी मुझमें जो मुझे अपनी दुनिया कहती थी
अपने सारे सुख छोड़ मेरे सारे दुख सहती थी
ना जाने क्या देखा था उसने जो कोई ओर नहीं देख पाया
शायद उस खुदा ने उसे मेरी जिदंगी का मसीहा बनाया
मेरे हर सुख और दुख का सहारा थी वो
मेरे खुले आसमान का तारा थी वो
उसे पता था उसके बिना मैं टूट जाऊंगा
उसे खोकर मैं भी ये जीवन जी नहीं पाऊंगा
शायद इसीलिए जाते जाते भी मुझसे एक वादा ले गई
खुद मर रही थी मगर मेरे जीने की दुआ कह गई
अब जी तो रहा हूं मगर वो बात नहीं हैं
तन तो हैं मगर रूह साथ नहीं हैं
अब इंतजार उस पल का जब मेरी रूह आजाद होगी
इस दुनिया ना सही उस दुनिया में तो उससे मुलाकात होगी

“एकांत”

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