मैं अपनी मर्जी का वीरा
##मै अपनी मर्जी का वीरा….
चापलूसी के वेश में
बहरुपिया राष्ट्र निर्माता है
होशियारी के भेष मे
बहरुपिया भाग्य विधाता है
बोली में दम नहीं है जी
त्रिकालमुखी यही है जी
अमृत की वर्षा है जी
संसार अमृता भरता जी
सब कुछ बोला सब कुछ सुना
दुनिया से नहीं कोई दूना
मैं ऐसा कृत्य कृत्य कर दूंगा
न कोई होगा फिर गुना
रंग रूप बदलता हूं मैं जा
जिसको कहता फिर मैं चा
थूक भी तो अपना ही था
गट्कू चाटू या मैं वा
मरती मरती मर जाने दो
मैं ही सब का प्रचारक था
विष ऐसा भर जाने दो
मैं अमृत का रक्षक था
मैं जो करता सबसे अच्छा
मैं जो कहता सबसे अच्छा
मैं जो पहनू सबसे अच्छा
सब में बोलो मैं ही अच्छा
मेरे राज में कुछ नहीं होगा
धनकोष भरेगा फिर हमरा
ना किसी अतिक्रमण होगा
सब में टॉप फिर होगा हमरा
मैं पढ़ा लिखा नहीं तो क्या
अनुभव ज्ञान में मैं ही कबीरा
सब की सुनता नहीं हूं मैं
मैं अपनी मर्जी का वीरा
चापलूसी के वेश में
बहरुपिया राष्ट्र निर्माता है
होशियारी के भेष मे
बहरुपिया भाग्य विधाता है ।
सद्कवि
प्रेमदास वसु सुरेखा