मे अपनो से दूर लिखूँ या पास लिखूँ
सोचता हूँ आज कुछ क्या खास लिखूँ,
नर नारी की रंग बिरंगी रास लिखूँ
न जाने कलयुग की लीला कैसी है
मैं अपनो से दूर लिखूँ या पास लिखूँ
यहां भाई भाई के भौंख रहा है खंजर
कब कैसी मैं किसकी किससे आस लिखूँ
ना सोचना “कृष्णा” कि तू क्यो उदास है
मैं हुस्नकीपरी को जीते जी लास लिखूँ
✍कृष्णकान्त गुर्जर धनौरा