✍️मेहरबानी✍️
✍️मेहरबानी…✍️
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मैं बहोत दूर चला आया
सिर्फ ये जानने के लिये
खाली शहर कैसा लगता होगा,
उजालो की बाते करनेवाला शहर
क्या गुमसुम अंधेरो से लिपटा होगा ?
आसमान को छूते आशियानों का
बूलंद इरादा क्या डगमगाया होगा..?
सड़कों को चीरती हुई भीड़ का
हौसला अब क्या सुस्त पड़ा होगा?
तप्तिश में खड़े वो पेड़ मायूसी को
धीरज की ठंडी छांव देना भूल गये होगे ?
क्या अभी उस बज़्म में नाउम्मीदी के लिये
मुहर्रिक शायरी की महफ़िल सजती होगी ?
अभी वहा दिन सोता होगा सुबह जागती होगी ?
शायद मुसीबत में
अपनी ही सोच संदेह से घिरी होगी…!!
यक़ीनन अभी वहाँ मौसम बदलता ही होगा…!
और जिंदगी यूँही गिरते उठते संभलती ही होगी…!
मैं बहोत दूर चला आया
सिर्फ ये जानने के लिये
अपनी खुशहाली में भरे मकान
क्या तंगहाली में सुने पडे होगे…?
या फिर वो ख़ुश्क पड़े रिश्ते
क्या कुछ प्यार की नमी छोड़ गये होगे…?
वो पुरानी खिलखिलाती मुस्कुराहट
क्या फिरसे मेरे ओठों को वापस लौटायेगे…?
यदि वो पत्थरदिल नहीं तो
ये मेहरबानी मुझ पर जरूर कर जायेगे..!
ये मेहरबानी मुझ पर जरूर कर जायेगे..!
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✍️”अशांत”शेखर✍️
11/06/2022