मेहनत के बस दाम है।
मेहनत के ही बस दाम है।
करना चाहो तो सबकाम है।।1।।
वो उसकी दिल ए जान है।
यह बात फैली सरे-आम है।।2।।
गर हम पे तेरे अहसान है।
तो हाज़िर मेरी भी जान है।।3।।
करने को ना इक काम है।
फिर भी उसे ना आराम है।।4।।
गम की देखो यह शाम है।
दूर करने को बस जाम है।।5।।
वह करता यूँ नेक काम है।
फिर क्यूं इतना बदनाम है।।6।।
इश्क़ की होती पहचान है।
जवानी आती जो परवान है।।7।।
माँ-बाप के यह अरमान है।
पूरे करनें जो तुम्हें तमाम है।।8।।
सच्चो का बस अपमान है।
झूठों को मिल रही शान है।।9।।
शहर में लगा बड़ा ज़ाम है।
घर में आये कुछ मेहमान है।।10।।
कहलानें को तो सम्मान है।
पर मिलता बस अपमान है।।11।।
उसमें ताकत बेमिसाल है।
लड़े कोई जो माँ का लाल है।।12।।
कहने को वह दर बान है।
पर ये कोठी उसी के नाम है।।13।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ