मेला
बच्चे अपने पिता के साथ मेला देखने गये। बच्चों ने देखा मेला चकाचौंध लगा हुआ है, मेले में मिठाई की दुकाने, खिलौने की दुकाने, झूले, और भी अन्य दुकाने देख बच्चे बड़े खुश हुए। अब बच्चे अपने पिता से खिलोने, मिठाई, झूले, सरकर्स आदि की जिद करने लगे। पिता ने बोला एक-एक करके सब कुछ दिलाऊंगा और मेला घूमने लगे। अब होता ये की पिता छोटे बच्चे को कुछ दिलाये तो बड़ा नाराज हो जाता, बड़े को कुछ दिलाये तो छोटा नाराज़ हो जाता। बच्चे ने बोला पिताजी रहने दीजिये इससे अच्छा तो हम अकेले ही घूम लेंगे। पिता ने बोला नाराज़ मत हो मेरे लिए आप सभी बराबर हो सब मिलेगा। इसी बीच मेला घूमते-घूमते अचानक बच्चो के हाथ से पिता की उंगली छूट गयी। बच्चे अलग-अलग भटक गए। बच्चे परेशान हो गए वो पिता को इधर -उधर ढूंढने लगे। अब बच्चे और परेशान हो गए, बच्चों को अकेला देख कुछ शरारती बच्चों ने उनसे मिठाई, खिलोने सब छीन लिए। बच्चे रोने लगे बच्चों को रोता देख कुछ लोग चुप कराने के लिए बहलाने के लिए पूछने लगे बेटा मिठाई चाहिए? बच्चे:- नहीं पिताजी चाहिए, खिलौने चाहिए? बच्चे:- नहीं पिताजी चाहिए। जब तक पिताजी साथ थे बच्चो को खिलोने, मिठाई, झूले सब चाहिए था, पिता के खोते ही बच्चे के लिए सारी मिठाई , खिलोने, झूलो का कोई मोल नही था। जो मिठाई, खिलोने बच्चों के पास थे वो भी कुछ शरारती बच्चों ने छीन लिया। अब बच्चों को पिता की कमी का पता चल रहा था। जब तक बीजेपी है जितने खिलोने लेने हैं ले लीजिए उंगली छूटने के बाद कुछ मिलना तो दूर जो खिलोने, मिठाई आपके पास है वो भी कुछ शरारती बच्चो (कांगीयों, वामपंथीयों, देशद्रोही तत्वों) के द्वारा छीन लिया जाएगा। फैसला आपका है उंगली तेज़ी से पकड़ना है या अकेले मेले में घूमना है।
✍️✍️मृत्युंजय कुमार