मेरे हिस्से की रोटी…
मैं भूखा, थाली भी सूखी।
कुछ देर इन्तजार के बाद
गिरी अकस्मात्, पीछे से रोटी,
अधजली, अधपकी सी।
मैं उसे देखता रहा,
बस देखता रहा।
बोला तभी रोटी वाला,
सोचता क्या है अऩस,
तू खशनसीब, तुझे रोटी मिल गयी
वर्ना खड़े है लोग लाइनो में
भूखे प्यासे, चूल्हे के पास ही।
अब मैं असमजंस में पड़ गया,
करु क्या, क्या करु।
यह रोटी मुझे स्वीकार नहीं,
और छोड़ दिया अग़र मैने
तो कोई और खा जाएगा
मेरे हिस्से की रोटी।