मेरे हर फंसाने में।
पेश है पूरी ग़ज़ल…
जमाना पूंछता है हमसे तुम्हारे बारें में।
कुछ यूं जुड़ा है तेरा नाम मेरे हर फंसानें में।।1।।
काली रात के हर सम्त बस सन्नाटे है।
जिन्दगी ना रहना चाहती है अब उजालें में।।2।।
क़ासिद ने खबर दी है यार आ रहा है।
वो कितना खुश है देखो घर को सजानें में।।3।।
कोई खता नहीं है इसमें यूं शम्मा की।
परवाने की चाहत है यूं जलके मर जानें में।।4।।
हम सोचते थे कोई ना हमें चाहता है।
पर देखो कितना हुजूम है हमें दफनानें में।।5।।
कभी जिन्दगी मुकम्मल ना पा सकी।
सब ने ही बे दिली दिखाई हमें अपनानें में।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ