मेरे संघर्षों के साथी
जब जब दुविधाओं ने पांव पसारा
घोर मुसीबत मुझ पर डाला
परमपिता परमेश्वर ने कुछ
परमारथ के साथी भेजे
जिनसे मिलकर अधियाए
संकट के हर गहरे बादल
ना घर के थे वो ना बाहर के
बस परसेवा के साथी थे
ईश्वर की छाया ले मेरे जीवन में
संखनाद से प्रवृत्त हुए
कोई मणिधारी कोई चक्रधारी
त्रिनेत्र से लेकर जटा में गंगा
त्रिसंधानी बाणों से दुखों की होली का
मर्दन करते संग चल रहे।
मामा श्री विमलेश धुरंधर
जिनसे ना कोई बड़ा पुरंदर
सीधी साधी छवि है जिनकी
लोभ मोह से त्याग लिए
स्वार्थभरी इस दुनिया में
परमार्थ ही इनकी है पहचान।
अपना काम बने ना बने
पर परहित में ये लगे पड़े
नर सेवा नारायण सेवा का प्रण
दिन प्रतिदिन ये लिए पड़े।
मानवता का दूजा नाम
मामा विमलेश बहुत महान
यश अपयश हो या हानि लाभ
हर स्तर को परे हटाकर
मेरे सपनों को पूरा करने में
इनके महा हैं योगदान।
शंकर जी जैसा भोलापन
कुछ मांग लिया हो तो मिला सदा
ना मांगा हो तो भी ये रहे सदा
दिन प्रतिदिन क्या पल प्रतिपल के ये साथी हैं
चाहे वो दिन हो या झंझावत की रात
कैसी भी हो संकट की बात
मामा जी निश्चल खड़े रहे
मेरे अपनों से बढ़कर मेरे सपनों में रमकर
करुणा की गंगा लिए चले
शब्द ना पूर्णता कर पाएंगे
इनकी अंशमात्र भी पहचान।
अमरेन्द्र भाई ने अमर कर दिया
व्यवहार कुशलता की पहचान
तन मन धन सब अर्पण रहता
मानवता की खुशहाली में।
इनका हर रोयां रोयां
प्रेम और विश्वास भिगोया
इनकी अमर कहानी में
नाम हमारा सौभाग्य बड़ा।