मेरे शहर में बस यूँ ही***
मेरे शहर में बस यूँ ही***
नफरत की आग में
आज ख़त्म होते जा रहे हैं सब रिश्ते नाते
उन बस्तियों,घरों को जला दिया,उजाड़ दिया उन्होंने,
जहां हम वर्षों से साथ रह रहे थे खुशी खुशी हम सारे,
सब ही मुस्कान लिए जिये जा रहे थे हम सारे
पता नहीं नज़र लग गई किसकी हमको हे प्रभु
मेरे शहर में बस यूँ ही***
नफरत की आग में
नफ़रत ही लिए जी रहे हैं आज देखो सब
आंखों में दुखो का लहू सा उतर आया है हम सबके
हर तरफ़ दुखो का मातम सा ही हो रहा है
हर आंखों में खून के आंसू से भर आते हैं हमारे
बस्तियों,घरों में पसरा सन्नाटा है आखिर कब तक..?
मेरे शहर में बस यूँ ही***
नफरत की आग में
हाथों की मेहंदी भी नहीं सूखी शौहर के उठ गये जनाजे
आज मां खाने पर इंतजार कर रही थी बेटे की…
बेटा नहीं, पर लाश पहुंच गई उसकी माँ के पास
सर से उठ गया साया अनाथ हो गए हैं बच्चे हमारे
हम कभी ईद-दिवाली मनाते थे साथ मिलकर
मेरे शहर में बस यूँ ही***
नफरत की आग में
आज़ न जाने क्यों हो गये हैं ख़ून के प्यासे हम एक दूसरे के
भाईचारे के रिश्तों में ज़हर घोल दिए आज लोभी लोगो ने
सत्ता की खातिर बांट दिया हम लोगों को कर दिया अलग
खूनी कर धरती माँ ,भाई को भाई से लड़ाने में किया काम
अच्छा था गुलाम देश मिली आजादी से हमें क्या मिला?
मेरे शहर में बस यूँ ही***
नफरत की आग में
व्यर्थ ख़ून बहाएं महापुरुषों ने ऐसा क्यों लगता हैं मुझको
देश को आजाद कराने में सपनों को भी छोड़ा उन्होंने
आज लहूलुहान किया भारत को वर्षों लगे बसाने में
औऱ देर न लगी उसे मिटाने में आज लोभी लोगो को
घर बार छोड़ भटक रहे हैं एक आश्रय की खातिर हम
मेरे शहर में बस यूँ ही***
नफरत की आग में
अब अपने ही देश में बन गये हैं हम शरणार्थी आज क्यो?
कब तक हम सहते रहेंगे लालची ओर गद्दारो के कारण सब
क्या हम एक हो पाएंगे सब हम क्या होगा सपना पूरा अब
बताओ तो क्या होगा सपना मेरा पूरा…?
क्या होगा पूरा…?
मेरे शहर में मेरा सपना…??
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद