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13 May 2018 · 1 min read

मेरे शहर की सड़क

मेरी शहर की सड़क को क्या हो गया

जिसे देखो वही इस पर फिदा हो गया

है हरजाई सा इसका स्वाभाव हो गया

जिसको भी अच्छी लगी संग सो गया

***

कोई दोस्ती दुश्मनी का बीज बो गया

है मासूम सा बच्चा इसी पर खो गया

कोई वदन पे लगा हुआ दाग धो गया

जब गया यहां से बाग- बाग हो गया

***

था जब से आ गया यहीं का हो गया

न जा सका कहीं नहीं कहीं तो गया

यहां पे नहीं जो होना था वो हो गया

लगी थी बड़ी भूख चुपचाप सो गया

***

है बचपना यहां फूट फूट कर रो गया

रोने का अन्दाज न दिल को छू गया

सड़क का था वो सड़क का हो गया

जितना होना था उसे उतना हो गया

***

है कब बढ़ा व कब बुढ़ापा आ गया

बचपना उसका कब का चला गया

उम्र की सब सीढ़ियां यहीं चढ़ गया

जीवन की सब पढ़ाई यहीं पढ़ गया

***

है किसी का रंग किसी पर चढ़ गया

मिले बहुत बार फिर भी बिछुड़ गया

है न कुछ होते हुए सब कुछ हो गया

मिले एक बार फिर सदा का हो गया

***

सामने आ कर वो रास्ता बदल गया

जाना था कहीं और चला कहीं गया

यारी बहुत पर दुश्मनों से मिल गया

सच बोलना था मुंह को सिल गया

***

न कुछ मिले तो सड़क पर आ गया

उसको तो इसका फुटपाथ भा गया

है चलता राहगीर तो तरस खा गया

रखा हुआ कटोरा सिक्के गिरा गया

***

रामचन्द्र दीक्षित’अशोक’

Language: Hindi
254 Views
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