मेरे बुद्ध महान !
मेरे बुद्ध महान !
(छन्दमुक्त काव्य)
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मेरे बुद्ध महान !
तेरी करुणा के सागर से,
उमड़ा था ज्ञान का सैलाब,
पूरे विश्व को आलोकित कर रहा।
तुमने दिखाया था परमानंद का मार्ग,
भुक्ति से विरत मुक्ति का मार्ग।
तुम थे ईश्वर के दिव्य रूप,
छोड़ दिया धन-वैभव बस एक ठोकर में,
कठिन तपस्या से मिली मुक्ति ,
ज्ञानयोग का प्रसार हुआ।
सम्यक ज्ञान के दिव्यज्योति से,
पूरा विश्व आलोकित हुआ।
मेरी राह है बिल्कुल उलट,
मैं खोजूँ भक्ति से मुक्ति का मार्ग,
भुक्ति को साथ लिए।
दर- दर भटकूँ आशीर्वचनों को,
मेरी कठिन राह में भय भी है,
आकांक्षाओं को पूरी न होने का भय,
धन-बल से अपमानित होने का भय,
माया के न मिट पाने का भय,
सत्य का दर्शन न हो पाने का भय।
पर क्या करूँ,
इस कंटकपथ पर जीवन सफर की मजबूरी है,
गृहस्थ धर्म पालन ही मेरी मजबूरी है ,
इस पथ से दूर जाकर,
मैं शांति पा नहीं सकता।
कुटुम्बजनों की विरह वेदना में,
मैं मुक्ति पा नहीं सकता।
फिर तो एक उपाय है,
बोधिवृक्ष के छाँव तले बैठ,
उस मिट्टी को नमन कर,
बटवृक्ष से गिरे पत्ते को,
दिल से लगा कर,
तेरे आभामंडल के कुछ दिव्यप्रकाश ,
अपने आभामंडल में भर लूँ।
सभी जीवों में करुणा,दया का भाव,
अपने हृदय में जगा लूँ।
गृहस्थ धर्म को निभाते हुए,
तेरे बताये लक्ष्य की प्राप्ति हेतु,
तुझसे अलग कुछ कर पाऊँ।
जीवन रूपी इस हलाहल को,
थोड़ा-थोड़ा कर पी जाऊँ।
भक्तियोग के बल पर ही,
मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करुँ ।
सनातन धर्म संस्कृति को,
फिर से प्रख्यापित कर पाऊँ।
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – ०८ /०९/२०२१
मोबाइल न. – 8757227201