मेरे फितरत में ही नहीं है
मेरे फितरत में ही नहीं है,
मैं किसी का भी इस्तेमाल करूं।
बचा लुंगा मैं उसे,
चाहे क्यूं न मैं मरूं।
मेरे फितरत में ही नहीं है . . . . . .
तेरे पाप पुण्य का लेखा जोखा,
ये धर्मकांटा बता देता है।
तू लाख छुपा ले कर्मों को,
तेरे ढोंग पाखंड आडंबर से,
ये सच का आईना सब दिखा देता है।
मेरे फितरत में ही नहीं है
मैं किसी के साथ भी धोखा करूं।
बचा लुंगा मैं उसे,
हर धोखे से क्यूं डरूं।
मेरे फितरत में ही नहीं है . . . . . .
लोगों की स्वाभाव और ब्यवहार,
वक्त के साथ बदल जाते हैं।
कभी अपने से थे उनके करीब,
अब उनके दिल को कहां भाते हैं।
मेरे फितरत में ही नहीं है,
मैं किसी के भी जज्बात से खेलूं।
बचा लुंगा मैं उसे,
दिल्लगी क्यूं करूं।
मेरे फितरत में ही नहीं है . . . . . .
चेहरे पे चेहरे जैसे नकाब लगा लेते हैं लोग।
पहचान ही नहीं आते जैसे बढ़ जाते हैं कई रोग।
मेरे फितरत में ही नहीं है,
मैं किसी को भी ऐसे लूट लूं।
बचा लूंगा मैं उसे,
बे पर्दा क्यूं न करूं।
मेरे फितरत में ही नहीं है . . . . . .
खुली किताब हूं मैं एक एक पन्ना पढ़ सकते हो,
कहीं गलत दिख भी जाए तो तुम लड़ सकते हो।
मेरे फितरत में ही नहीं है,
मैं किसी से भी गद्दारी करूं।
बचा लूंगा मैं उसे,
ईमानदारी क्यूं न करूं।
मेरे फितरत में ही नहीं है . . . . . .