मेरे प्रभु
मेरे प्रभु
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देख के मानव की चतुराई हर पल,
पीड़ा अंतस में बहुत है होती
छल कपट की चादर ओढ़े,
भेष बदलता मानव हर पल।
हे!जमीं वही ,चांद तारे वही,
पर ,इंसा क्यूं है बदला-बदला
रहा नही वो भाव दिलों में,
मानव का विश्वास ही मानव से
उठ गया,
मानव क्यों इतना बदल गया।
तन,मन,धन सब प्रभु को अर्पित,
नित नाम जपूं,नित ध्यान कंरू
सब कुछ है प्रभु तेरा,
कुछ नहीं जगत में मेरा–
जिंदगी की बागडोर,कर दी है
प्रभु तुमको समर्पित!!!!
नैया मेरी मझधार में,
पार तुम ही लगाना,
तुम ही जग के परमेश्वर हो–
डग मग करती नैया मेरी
मांझी तुम बन जाना!!!
कुसुम-कलिका की माला पिरोकर,
पहनाऊं गले प्रभु के
माथ झुकाती प्रभु चरणों में,
नतमस्तक होकर—-
सुषमा सिंह *उर्मि,,