“मेरे तो प्रभु श्रीराम पधारें”
खुशियों का अंबार लिए, जीवन का आधार लिए।
क्षीरसागर विश्राम स्थली, रुप एक साकार लिए।
जो दिव्य चेतना के हैं पोषक, वही अयोध्या धाम पधारें।
मेरे तो प्रभु श्रीराम पधारें, मेरे घर श्रीराम पधारें।।
कण-कण में व्याप्त है जो, ब्रह्माण्ड का अधिपति वो।
बसते हैं उर जनमानस के,विश्वविदत विख्यात हैं वो।
घटित होता न छड़ बिन जिनके, वही नाथ अविराम पधारें।
मेरे तो प्रभु श्रीराम पधारें, मेरे घर श्रीराम पधारें।।
सत्य सनातन धर्म हैं राम, शक्ति और संघर्ष हैं राम।
विचार और उद्देश्य हैं राम, छाया और स्पर्श हैं राम।
वन गए तो राम थे मेरे, आये बन पुरुषोत्तम पधारें।
मेरे तो प्रभु श्रीराम पधारें, मेरे घर श्रीराम पधारें।।
सत्ता और समर्पण में, हर अर्पण हर दर्पण में।
कुसुम लता मादप में भी, विधि, विधान और तर्पण में।
हैं जग द्रष्टा, जग स्रष्टा, लोक हृदय में श्याम पधारें।
मेरे तो प्रभु श्रीराम पधारें, मेरे घर श्रीराम पधारें।।
राकेश चौरसिया