मेरे जैसा
मेरे जैसा
कुकड़ूँ कूँ कर मुर्गा बोला
जागो तुम भी मेरे जैसा।
किरण बिखेरता सूरज बोला
चमको तुम भी मेरे जैसा।
हँसते हुए फूल बोला
हँसते रहना सदा मेरे जैसा।
गुनगुनाता हुआ भौंरा बोला
गाओ तुम भी मेरे जैसा।
टिमटिमाता दीपक बोला
तम हरो जग से मेरे जैसा।
कल-कल करती नदी बोली
आगे ही बढ़ना सदा मेरे जैसा।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़