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12 Jun 2023 · 1 min read

मेरे छिनते घर

मत पूरी करो हर आस मेरी
पर मुझको भी जीने दो
निहारे आँखे इक विश्वास भरी
मत मारो कुछ दिन तो और जीने दो

क्षमा कर दो अपराध मेरे
सीमा नही जानी जो ,जंगल और शहर में
घूमा मै बेबाक यहॉ नदी नाले और नहर में
जानवर हूँ इतना नही समझ पाता
भिन्न है नियम,आप हो सृष्टि विधाता
आप घर आओ मेरे तो वो सफारी बन जाए
गर मै आ जाऊ तो मेरी जान पे बन जाए

ज्यादा हो गए हम तो क्या इस तरह मिटाओगे ?
तुम भी तो हो डेढ अरब,अपने लिए भी यही कानून बनाओगे
इतने ही हिंसक है अगर हम वनचर
तो लौटा दो हमे हमारे वन हमारे घर
ये भी मेरा वो भी मेरा सब अपना बताते हो
कौन है बड़ा जानवर खुद ही साबित कर जाते हो

जिरह नही है ये हाथ जोड़ विनय है
आशियाना छीन चुके कब का बस जान छोड़ दो
मत देखो मुझमे रूप किसी देव का
निरीह प्राणी समझ प्राण छोड़ दो
जीना चाहते है हम भी मेरी जान छोड़ दो

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