मेरे गुरु
मेरे गुरु
भले ही दुनिया को स्वार्थ की बेहरम जंजीरों ने क्यूँ न जकड़ लिया हो? भले ही रिश्ते,ईमान, सम्मान, स्वाभिमान पर भी अर्थ का वर्चस्व क्यूँ न हो गया हो? पर वक्त वक्त पर अनुभूति हो ही जाती है कि इंसानियत अभी पूरी तरह दफन नहीं हुई है इंसानियत अभी जिन्दा है और जिन्दा है ऐसे लोग भी जिन्हें अपनों से ज्यादा दूसरों की परवाह होती, दूसरों की तकलीफ को अपनी तकलीफ बना लेते है और सदा कोशिश में जुटे रहते है हँसने और हँसाने में, जालिम समाज के जख्मों से भले ही सीना छलनी छलनी हो जिसका दर्द लेखन में भी झलक ही जाता है पर चेहरे पर सदैव खिलखिलाती हँसी रहती है आज आपकी मुलाकात ऐसे ही एक गुरु से कराते है
मेरे गुरु – पारस मणि अग्रवाल से
मेरी बचपन से एक सपना था कि हम एक लेखिका बने । मगर इस बारे में हमे कुछ अधिक पता नही था । हम अपने शब्दों को अपनी डायरी में कैद करके रखे हुए । मेरा हुनर मेरे तक ही सीमित था । हम अपनी अभिव्यक्ति को दूसरे तक नही पंहुचा पा रहे थे । फिर एक दिन facebook के जरिये मेरी बात पारस सर से हुयी जो एक अच्छे बेहतर लेखक है इनकी लिखावट इनका हुनर बहुत जगह प्रसिद्ध है । जब हमने इन्हें अपने हुनर के बारे में बताया तो इन्होंने मेरी अभिव्यक्ति पड़ी मेरी कहानी पड़ी तो इन्हें अच्छी लगी । मेरी जिंदगी में एक नई किरण लेके आये । इनका स्वभाव बहुत ही अच्छा । ये मेरे गुरु होने के साथ साथ मेरे अच्छे मित्र भी है। इन्होंने मेरे हुनर को दूसरों तक पहुचाया । हमे एक उम्मीद दी । हम बहुत बहुत आभार प्रकट करते है सर का जिन्होंने हमें एक लेखिका के काबिल समझा । ऐसे लोग दुनिया में बहुत कम होते है
धन्यवाद सर आप ने मेरी सपने को पूरा करने मेरी बहुत मदद की । मेरी जिंदगी में आप की बेहतर जगह है । जब जब मेरे सपने की बात होगी तब तब आपका जिक्र जरूर किया जायेगा
Thanx sar………….
– Writer Arpita patel