$ग़ज़ल
#बह्र- 1222 1222 1222 1222
#ग़ज़ल
हमें बचपन लिए दर्पण कई मंज़र दिखा जाता
बड़ी मासूमियत थी चेहरों पर ये सिखा जाता/1
निभाना साथ दिल से दोस्तों का शाद करता दिल
कभी वो रूठना भी और चाहत को बढ़ा जाता/2
बनाई नाव क़ाग़ज़ की बड़े सपने बुना करती
किनारे से किनारे का सफ़र इससे पढ़ा जाता/3
खिलौने तब बना मिट्टी के खेला हम किया करते
दिलों की पीर को टूटा खिलौना इक जता जाता/4
सभी अपने लगा करते घरों के दर खुले आँगन
यही माहौल सच तहज़ीब अपनापन बता जाता/5
कहानी में सुनी परियाँ कभी राजा कभी रानी
इन्हीं में रब खुली सीरत बड़ा जीवन रचा जाता/6
निवाला छीन ले उसको बड़ा ‘प्रीतम’/कहूँ कैसे?
भला बचपन बिना मनभेद रोटी जो खिला जाता/7
#आर.एस.’प्रीतम’
सर्वाधिकार सुरक्षित ग़ज़ल