‘मेरे गुरुवर’
गुरू ज्ञान दिया अज्ञान हरा,
आप ने मुझमें प्रकाश भरा।
मैं था निरा अज्ञानी गुरवर,
आपकी कृपा से पार तरा।।
गुण अवगुण की पहचान न थी
वाणी में कोई सुर-तान न थी।
मैं मूढ़ सा बालक और मति मंद
परब्रह्म की भी पहचान न थी।।
विवेक का मुझको को दान दिया,
जीवन को अमृत सा पान दिया।
भटकी हुइ राह से निकल सकूँ,
मति को मेरी वो वरदान दिया।।
गुरु चरणों में शीष झुकाऊँ मैं,
नित स्तुति गुरु आपकी गाऊँ मैं।
रहूँ कृतज्ञ आपके उपकारों का,
कैसे इस ऋण को चुकाऊँ मैं।।
-गोदाम्बरी नेगी