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14 Feb 2024 · 1 min read

मेरे उर के छाले।

मेरे उर के छाले।

जग-जग जाते जख्म निरंतर
पीर असह से भरता अंतर,
दिखा-दिखाकर स्वप्न सजीले छलते रहे उजाले
मेरे उर के छाले।

समय क्षुब्ध के निष्ठुर झोंके
अवरोधों का हठ पग रोके,
जिस दर हमने सब कुछ खोया,वहीं लगे हैं ताले
मेरे उर के छाले।

देख मुझे शशि और सितारे
बरसाते छुप – छुप अंगारे,
उमड़ -घुमड़कर गरज रहे हैं मेघ गगन के काले
मेरे उर के छाले।

घर-आँगन, दर, ड्योढी निर्जन
नित्य विपद के भीषण गर्जन,
भाग्य निरंतर अपने मुख पर अवगुंठन है डाले
मेरे उर के छाले।

अनिल मिश्र प्रहरी।

Language: Hindi
154 Views
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