मेरे आदर्श मेरे पिता
मेरे आदर्श मेरे पिता हैं,
वही मेरे गुरु हैं वही मेरे मित्र हैं ।
उनके सिवा मेरा न कोई यत्र है न कोई तत्र है ।।
वही मेरे दिन हैं वही मेरे रात हैं ।
ये मेरा हँसता खेलता जीवन,
बस उन्हीं से शुरुआत है,
और उन्हीं पर समाप्त है ।।
मेरी ये हँसती खेलती जिंदगी में हमें कहीं गम नहीं है,
हाँ माँ हमसे जरूर थोड़ी रूठ गई हैं,
इसलिये वो भगवान के यहाँ चली गई हैं,
उसके लिए मेरा कोई आँसू कम नहीं है,
बाकी माँ की कृपा से हमें यहाँ कोई गम नहीं है ।।
हम तीन जनों की जिंदगी में,
दो ही और बचे हैं मैं और मेरे पापा,
अब उन्हीं से मेरे सुबह की शुरुआत होती है,
और उन्हीं पर मेरी रात्रि की समाप्ति भी हो जाती है ।।
मेरी प्रार्थना है भगवन से,
मैं जब भी इस धरा पर आऊँ तो,
हमलोगों को हमेशा हरा भरा रखना ।।
और उस हर जन्म में,
पिता गुरु और मित्र के रूप में यही पिता,
माता के रूप में यही माता हमें हमेशा देना ।।
तभी इस धरती पर हमें भेजना,
नहीं तो इस धरा पर,
हमें कभी मत भेजना,
सदा अपने साये में रखना ।।
धरती पर जो भेजना हो तो,
मेरे जीवन की शुरुआत हमेशा इन्हीं से करना ।
और हो सके तो मेरे जीवन का अंत भी,
इन्हीं के साथ या फिर इनकी यादों में करना ।।
मैं ज्यादा जीना नहीं चाहता,
और ना चाहता हूँ कठिन मौत,
बाप बेटे और माँ बेटे का प्यार का रिश्ता,
हर जन्म में प्यारा बना रहे,
ताकि लग न सकें हम किसी के बोझ,
और कर सकें सदा इस धरा पर आकर,
आपस में मिलकर के मौज ।।
कवि – मनमोहन कृष्ण
तारीख – 17/07/2023
समय – 05 : 52 ( सुबह )