मेरे अरमान
मेरे अरमान
मेरे भी कुछ अरमान थे ,अब कहीं खो से गए हैं।
जीना चाहते थे अपने तरीके से ,अब कहीं मर से गए हैं।
देखना चाहते थे सारा संसार अपनी आंखों से, अब दूसरों की आंखों से देखते हैं सारा जहां।
मां पापा के लिए करना चाहते थे कुछ अपने दम पर, सारा सपना चूर-चूर हो गया क्योंकि रहते हैं दूसरों के दम पर।
मां के लिए पायल और पापा के लिए नए नए जूते लाना चाहती थी, पर मेरे अपने ही पांव में जंजीर ए पड़ गई है।
हर किसी को अपना सा मानते थे जो कि अपना था ही नहीं, जिसे नहीं मानते थे दिया सहारा उसी ने ही।
✍️ वंदना ठाकुर ✍️